मदर टेरेसा का जीवन परिचय, मदर टेरेसा का जन्म कहाँ हुवा था, मदर टेरेसा का योगदान, मदर टेरेसा हिंदी स्टोरी,
जन्म और स्थान - जन्म से मदर टेरेसा विदेशी थी। वह मूल रूप से युगोस्लाविया की थी। उनका जन्म 27 अगस्त, 1910 में एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनके पिता स्टोरकीपर थे।
'होनहार विरवान के होत चिकने पात' की कहावत उन पर लागू होती है। बचपन से ही उनका रुझान परोपकार और पर - सेवा की ओर था। वे किसी को भी कभी दु:खी देख ही नहीं सकती थी - चाहे वह मनुष्य हो या अन्य जीव - जंतु। मदर टेरेसा नि:स्वार्थ भाव से दीन - दु:खियों की सेवा में लगकर अपूर्व आनंद प्राप्त करती थी
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Mother Teresa |
प्रेरणा : - ( i ) जन्म - जात गुण - दीन - दुखियों की सेवा करना उनका जन्मजात गुण था। फिर भी इस कार्य के लिए उन्हें बाहर से भी प्रेरणा मिली। जब वे 12 वर्ष की थी तब उन्होंने दार्जिलिंग के मिशनरियों के संबंध में सुना था। उन्होंने उसी दिन संकल्प कर लिया था कि वह भी मिशनरियों की तरह अपने जीवन को लोक कल्याण में लगा देंगी। उनका या दृढ़ विश्वास था कि दीन दुखियों की सेवा करके ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है
( ii ) यीशु मसीह का आदर्श - मदर टेरेसा की इस निश्चय को 10 सितंबर, 1946 को यीशु मसीह की विशेष प्रेरणा से बल मिला। उस दिन एक का आकाशवाणी हुई। उस आकाशवाणी के माध्यम से यीशु मसीह ने उन्हें संदेश दिया - सब कुछ छोड़ दो और ईश्वर की सेवा करो। निर्धनतम व्यक्तियों के बीच जाओ और उसकी सेवा करो। इस संदेश में निर्धनतम व्यक्तियों की सेवा की बात कही गई है। उन लोगों की सेवा के लिए उन्हें कहा गया है जो गरीबी की सीमा रेखा से भी बहुत नीचे रह रहे थे। बस उसी दिन से मदर टेरेसा ने गंदी बस्तियों में जाकर दिन-हिन् लोगों की सेवा करने का व्रत ले लिया। इस कार्य के लिए उन्होंने पोप से भी आशीर्वाद प्राप्त किया। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए मदर टेरेसा ने सबसे पहला काम यह किया कि 1948 ईस्वी में कोलकाता के एक गंदी बस्ती में 'कलीनावास स्कूल' खोला ताकि अज्ञान के अंधेरे में फंसे इन लोगों को कुछ ज्ञान मिल सके।
प्रेरणा से पूर्व का जीवन - जन्म से ही मदर टेरेसा इस संसार की चकाचौंध से विरक्त थी। उनके अंदर मिशनरी भाव ठाठें मार रही थी। 12 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने धर्म संघिनि बंन कर लोक सेवा करने का निर्णय कर लिया था परंतु किन्हीं कारणों से वे इस लक्ष्य को पूरा ना कर सकी। लेकिन 18 वर्ष की अवस्था में धर्म संघिनि बनने की इच्छा को पूरा करके उन्होंने घरवालों को तथा संसार के ऐश्वर्यमय जीवन को त्याग दिया। उन्होंने भारत को ही अपने सेवा का क्षेत्र चुनाव।
आजीविकोपार्जन - मदर टेरेसा धर्म संघिनि थी, अतः उन्हें कमाई करने की तो कोई चिंता नहीं थी। वे तो अपने हाथों से कमाए गए धन पर जीना चाहती थी। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने अध्यापिका बनकर अपना सामाजिक जीवन आरंभ किया। कोलकाता में वे सेंट मेरी हाई स्कूल में अध्यापिका बन गई। 1946 ईस्वी में वे इस स्कूल की प्राचार्य बन गई।
'मदर' का अर्थ है 'माता' । माता उस समय तक अपने बच्चों की सेवा में जुटी रहती है जब तक वे अपने सहारे पर खड़े नहीं हो जाते। ठीक इसी प्रकार टेरेसा ने अपना जीवन ऐसे लोगों के लिए लगा दिया जिनको संसार ने त्याग दिया था, जिनके दुख दर्द में उनका कोई भी सहारा नहीं था। टेरेसा ऐसे ही लोगों के लिए माता (मदर) बनकर उनकी सेवा में लग जाती, तभी तो उन्हें 'मदर' कहा जाने लगा। वैसे तो यीशु मसीह की आकाशवाणी में इन्हें 'निर्धनतम' लोगों की सेवा करने की प्रेरणा मिली थी, फिर भी एक खास घटना ने मदर टेरेसा को इस और लगाया।
एक बार उन्होंने देखा कि कोलकाता में एक अस्पताल के सामने एक ऐसी स्त्री पड़ी थी जो मौत की घड़ियां गिन रही थी और जिसके शरीर को चूहे और कीड़े खा रहे थे। लोग उसे देख भी रहे थे, पर कोई भी उसकी सहायता करने को तैयार नहीं था। मदर टेरेसा ने उस स्त्री की सेवा में अपने आप को लगा दिया। उसी दिन से मदर टेरेसा ने अपने जीवन के लक्ष्य को और भी स्पष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि वह लोगों को प्यार करती है जिन्हें कोई भी प्यार नहीं करता, जो अपाहिज है, दीन - हीन है, रोग आदि के कारण विवश हो जीवन की घड़ियां गिन रहे हैं।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना - मदर टेरेसा ने अपने आप को पूरी तरह से परित्यक्त लोगों की सेवा में लगा दिया। समाज में इसकी चर्चा और प्रशंसा होने लगी। उन्होंने अपने कार्य का संचालन करने के लिए कोलकाता में 'जगदीश चंद्र बसु रोड' पर स्थान भी दे दिया गया। इसी स्थान पर उन्होंने 1950 ईस्वी में 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की। इस संस्था के माध्यम से हजारों हजारों - लाखों लोगों की सेवा में लगी रही।
पुरस्कृत - मदर टेरेसा की सेवा - भाव की चर्चा भारत की सीमाओं को भी लांघ गई। विश्व ने उनके सेवा - भाव को स्वीकार किया और नोबल पुरस्कार देकर उनका सम्मान किया।
स्वर्गारोहण - बड़े खेद की बात है कि अब मदर टेरेसा हमारे बीच नहीं हैं उनका स्वर्गवास 5 सितंबर, 1997 को हो गया था। पर उनके द्वारा किए गए काम हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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